De Tweede Ronde. Jaargang 28
(2007)– [tijdschrift] Tweede Ronde, De– Auteursrechtelijk beschermd
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Gedicht van een nachtwaker
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रात के संतरी की कवितारात को
ठीक ग्यारह बजकर तैंतालीस मिनट पर
दिल्ली में जी.बी. रोड पर
एक स्वी
ग्राहक पटा रही है।
पलामू के एक कस्बे में
नीम उजाले में एक नीम हकीम
एक स्वी पर गर्भपात की
हर तरकीब आजमा रहा है।
बाड़मेर में
एक शिशु के शव पर
विलाप कर रही है एक स्त्री।
बंबई के एक रेस्खों में
नीली- गुलाबी रोशनी में थिरकती स्त्री ने
अपना आख़िरी कपड़ा उतार दिया है
और किसी घर में
ऐसा करने से पहले
एक दूसरी स्वी
लगन से रसोईघर में
काम समेट रही है।
महाराजगंज के ईंट भट्टे में
झोंकी जा रही है एक रेज़ा मज़दूरिन
ज़रूरी इस्तेमाल के बाद
और एक दूसरी स्त्री
चूल्हे में पते झाँक रही है
बिलासपुर में कहीं।
ठीक उसी रात उसी समय
नेल्सन मण्डेला के देश में
विश्वसुंदरी प्रतियोगिता के लिए
मंच सज रहा है।
एक सुनसान सड़क पर एक युवा स्त्री से
एक युवा पुरुष कह रहा है
- मैं तुम्हें प्यार करता हूँ।
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[Vervolg Nederlands]Terwijl de dichter na een licht avondmaal
een sigaretje rookt
nodigt hij
deze vrouw die de wereld vertegenwoordigt
met klem uit
in de wereld van zijn poëzie
denkend
dat ze misschien niet komt,
omdat ze zoveel liefde, zoveel respect,
zoveel gelijkwaardigheid niet gewend is.
Ze aarzelt.
Ze weet zich geen raad.
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[Vervolg Hindi]इधर कवि
रात के हल्के भोजन के बाद
सिगरेट के हल्के-हल्के कश लेते हुए
इस पूरी दुनिया की प्रतिनिधि स्त्री को
आग्रहपूर्वक
कविता की दुनिया में आमंत्रिरत कर रहा है
सोचते हुए कि
इतने प्यार, इतने सम्मान की,
इतनी बराबरी की
आदी नहीं,
शायद इसीलिए नहीं आ रही है।
झिझक रही है।
शरमा रही है।
कात्यायनी
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