De Tweede Ronde. Jaargang 28
(2007)– [tijdschrift] Tweede Ronde, De– Auteursrechtelijk beschermd
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Toeval
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संयोगजब सूरत में महामारी फैली
तब जो हज़ारों लोग वहाँ से लदफद भागे
उनमें हरिनन्दन भी था
जो रास्तेभर भगवान् की कृपा पर चकित रहा
कि कैसे छूटते छूटते उसे यह गाड़ी मिल गयी
और वह गाड़ी एक हज़ार सात सौ छप्पन किलोमीटर
चलने के बाद एक मालगाड़ी से टकरायी
और एक बार फिर हरिनन्दन भगवान् की असीम कृपा के सम्मुख
नतमस्तक था कि वह बाल बाल बच गया
और बचकर अपने गाँव के स्टेशन लहलह दुपहरिया उतरा
और रास्ते के धूप और धूल भरे चौर में
लुटेरों से घिर गया
और अब तीसरी बार वह भगवान् की लाख लाख कृपा पर चकित था
कि लुटेरों ने उसकी सन्दूक तो छीन ली जिसमें कुल सात सौ तेईस
रुपये थे और एक जोड़ी कपड़ा पर लाख रुपये की जान बख्श दी
और यही सोचते सोचते वह कच्चे घर के आँगन में
झोलंग खाट पर पड़ा तारे ताकता सो गया
और उसी रात एक गोतिया ने पुश्तैनी दुश्मनी में मौका पा
उसका काम तमाम कर दिया।
कुछ दिनों बाद घोषणा हुई कि सूरत में जो महामारी थी
वह वास्तव में महामारी नहीं थी।
अरुण कमल
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